Friday, January 30, 2009

ज़िन्दगी का अलग रूप

क्या सोचते हैं हम और क्या हो जाता है,
ज़िन्दगी का अलग ही रूप सामने आता है,
हमारे सारे सपने यूँ टूट जाते हैं,
जैसे पतझड़ में पत्ते पेड़ों का साथ छोड़ जाते हैं,
कहते हैं की आँखों से आंसू गिरते हैं,
पर मैंने इन्हें दिल से निकलते देखा है,
अपनी ज़िन्दगी को अपने सामने,
मृत्यु में बदलते देखा है,आता है एक समय भी ऐसा,
जब हमारे सारे सपने कहीं खो जाते हैं,
हम अपना अस्तित्व खो कर भी ,
जिंदा रहने के लिए मजबूर हो जाते हैं,
हर इच्छा हर चाह से मन विरान हो जाता है,
ये वो गुलशन है जो अपने उजड़ने का मातम मनाता है,
क्यों हमारी ज़िन्दगी हमारे सपनो के मुताबिक नहीं चलती,
क्यों ये दुनिया हमारे शब्दों को भूलकर,
दिल की आवाज़ को नहीं सुनती,
क्यों अपने परिश्रम का बलिदान कर देने पर भी,
हम भाग्यहीन रह जाते हैं,
क्यों देते हुए दूसरों को बहुत,
हमारे खुद के हाथ खाली रह जाते हैं,
मेरे अब तक के जीवन का यही सार है,
बहते आंसू, टूटे सपने,हमारे ,
ये ही , जीवन के आधार हैं...
xxxx
Kavita- my colleague at Newfields

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