दिल की दहलीज़ लाँघ कर,
जब से तुम मेरी ज़िन्दगी में आई हो,
ज़िन्दगी भी मुझसे बड़े अदब,
और तहजीब से पेश आई है.
बहुत खलता है खालीपन इस सीने में,
तो इसे धुएँ से भर दिया,
नींद नहीं मुकम्मल इन आँखों को,
तो इन्हें ख्वाबों से भर दिया.
दिल में रखूँगा जज़्बात अपने,
ज़ुबान तक नहीं लाऊँगा,
देखी है तुमने बेखुदी मेरी,
अब तो बेरुखी ही दिखाऊंगा.
तेरे नर्म बदन की गर्म छाँव तले,
सुलगते रहे रात भर,
गुज़र गई शब थोड़ी ही देर में,
आँख खुली तो देखा रूबरू है सेहर.
कुछ ख़लिश हो सीने में,
तो बस हम से ही कहना,
ख़फा भी हो जाऊं तुमसे,
मेरे दिल में ही महफूज़ रहना.
तेरे इश्क से रोशन रूह मेरी,
फैली खुशियों की धूप,
जित देखूँ उत देखूँ तुझको,
तेरा इश्क नचाए खूब.
ख़्वाबों के फर्श पर,
ख़यालों के पाँव फिसलते रहे,
तेरे फिराक में शब् भर,
सेहर तक मचलते रहे.
बिखरी बिखड़ी सी थी मेरी ज़िन्दगी,
तेरी बाँहों में आ कर सिमटने लगी,
ग़म-ए- ज़िन्दगी भी रूह के हाथों से
रेत बन कर वाकई फिसलने लगी...
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राजीव झा