Friday, January 30, 2009

प्रिय तुम आते तब क्या होता!

मधुर प्रतीक्षा ही जब इतनी, प्रिय तुम आते तब क्या होता?


मौन रात इस भांति कि जैसे कोई गत वीणा पर बज कर,

अभी-अभी सोई खोई-सी, सपनों में तारों पर सिर धर और दिशाओं से प्रतिध्वनियाँ,

जाग्रत सुधियों-सी आती हैं,

कान तुम्हारे तान कहीं से यदि सुन पाते, तब क्या होता?

तुमने कब दी बात रात के सूने में तुम आने वाले,

पर ऐसे ही वक्त प्राण मन,

मेरे हो उठते मतवाले,साँसें घूमघूम फिरफिर से,

असमंजस के क्षण गिनती हैं,मिलने की घड़ियाँ तुम निश्चित,

यदि कर जाते तब क्या होता?

उत्सुकता की अकुलाहट में,

मैंने पलक पाँवड़े डाले,अम्बर तो मशहूर कि सब दिन,

रहता अपने होश सम्हाले,तारों की महफिल ने

अपनी आँख बिछा दी किस आशा से,

मेरे मौन कुटी को आते तुम दिख जाते तब क्या होता?

बैठ कल्पना करता हूँ, पगचाप तुम्हारी मग से आती,

रगरग में चेतनता घुलकर, आँसू के कण सी झर जाती,

नमक डली सा गल अपनापन, सागर में घुलमिल सा जाता,

अपनी बाँहों में भरकर प्रिय, कण्ठ लगाते तब क्या होता?

-बच्चन

6 comments:

  1. sundar rachna,

    badhaii sweekaren.

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  2. बहुत बारीक संवेदनाएं, सुंदर-सुमधुर अभिव्यक्ति, विज्ञापन की दुनिया में रहकर, सबकुछ बेचने की जुगत वाले संसार से जूझते हुए, आपने अंतर्मन में इतना कुछ बचा-संजो रखा, इसके लिए बधाई, ऐसी ही लिखती रहें, आगे बढ़ती रहें, मेरी शुभकामनाएं. रात, प्रतीक्षा, सूरज और उच्छ्वास का उपयोग खूब खूबसूरत है.
    चण्डीदत्त शुक्ल, फोकस टेलिविजन, नोएडा
    www.chauraha1.blogspot.com

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  3. भाव और विचार के श्रेष्ठ समन्वय से अभिव्यक्ति प्रखर हो गई है । विषय का विवेचन अच्छा किया है । भाषिक पक्ष भी बेहतर है । बहुत अच्छा लिखा है आपने ।
    मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-आत्मविश्वास के सहारे जीतें जिंदगी की जंग-समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  4. सुंदर विचार, प्रखर अभिव्यक्ति, अच्छा शब्द विन्यास..........
    बेहतरीन कविता..........बहुत अच्छा लगा पढ़ कर
    स्वागत है आपका

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