है कहाँ वह आग जो मुझको
जलाए,है कहाँ वो ज्वाल पास
मेरे आए,रागिनी, तुम आज दीपक
राग गाओ,आज फिर से तुम बुझा
दीपक जलाओ,तुम नई आभा नहीं मुझमे
भरोगी,नव विभा में स्नान तुम
भी तो करोगी,आज तुम मुझको जगा कर
जगमगाओ,आज फिर से तुम बुझा
दीपक जलाओ,मैं तपोमय, ज्योति की,
पर प्यास मुझको,है प्रणय की शक्ति पर
विश्वास मुझको,स्नेह की दो बूँदें भी
तो तुम गिराओ,आज फिर से तुम बुझा
दीपक जलाओ,कल तिमिर को भेद मैं
आगे बर्हुंगा,कल प्रलय की आँधियों
से मैं लारुंगा,किन्तु आज मुझको आँचल
से बचाओ,आज फिर से तुम बुझा
दीपक जलाओ....
Friday, January 30, 2009
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ...
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