इसीलिए खडा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
जमीन है न बोलती न आसमान बोलता,
जहान देखकर मुझे नहीं जबान खोलता,
नहीं जगह कहीं जहां न अजनबी गिना गया,
कहां-कहां न फिर चुका दिमाग-दिल टटोलता,
कहां मनुष्य है कि जो उमीद छोडकर जिया,
इसीलिए खडा रहा कि तुम मुझे पुकार लो
इसीलिए खडा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
तिमिर - समुद्र कर सकी न पार नेत्र की तरी,
विनिष्ट स्वप्न से लदी, विषाद याद से भरी,
न कुल भुमि का मिला, न कोर भोर की मिली,
न कट सकी, न घट सकी विरह - घिरी विभावरी,
कहां मनुष्य है जिसे कमी खली न प्यार की,
इसीलिए खडा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
इसीलिए खडा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
उजाड से लगा चुका उमीद मैं बहार की,
निदाघ से उमीद की बसंत के बयार की,
मरुस्थली मरिचिका सुधामयी मुझे लगी,
अंगार से लगा चुका उमीद मैं तुषार की,
कहां मनुष्य है जिसे न भूल शूल-सी गडी,
इसीलिए खडा रहा कि भूल तुम सुधार लो!
इसीलिए खडा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
पुकार लो दुलार लो, दुलार कर सुधार लो!
-बच्चन
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