Friday, January 30, 2009

मिटटी का हूँ छोटा दीपक


मुझे न अपने से कुछ प्यार,

मिटटी का हूँ छोटा दीपक,

ज्योति चाहती दुनिया जब तक मेरी,

जल जल कर मैं उसको देने को तैयार...

पर यदि मेरी लौ के द्वार,

दुनिया की आँखों को निद्रित,

आँखों को करते हों छिद्रित,मुझे बुझा दे,

बुझ जाने से मुझे नहीं इन्कार...

केवल इतना ले वो जान,

मिटटी के दीपो के

अन्तरमुझमे दिया प्रकृति ने है कर,

मैं सजीव दीपक हूँ,

मुझमे भरा हुआ है मान,

पहले कर ले खूब विचार,

तब वह मुझ पर हाथ बर्हाए,

कहीं न पीछे से पछताए,

बुझा मुझे फिर जला न सकेगा दूसरी बार.......

-बच्चन

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