Friday, January 30, 2009

क्षण भर को क्यों प्यार किया था


अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर,


पलक संपुटों में मदिरा भर,


तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था?


क्षण भर को क्यों प्यार किया था?



‘यह अधिकार कहाँ से लाया!’


और न कुछ मैं कहने पाया -


मेरे अधरों पर निज अधरों का तुमने रख भार दिया था!


क्षण भर को क्यों प्यार किया था?



वह क्षण अमर हुआ जीवन में,


आज राग जो उठता मन में -


यह प्रतिध्वनि उसकी जो उर में तुमने भर उद्गार दिया था!


क्षण भर को क्यों प्यार किया था?

-बच्चन

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