मैं जगत के ताप से डरता नहीं
अब,मैं समय के शाप से डरता नहीं
अब,आज कुंतल छाँह मुझ पर तुम किये होप्राण, कह दो, आज तुम मेरे
लिए हो...रात मेरी, रात का श्रृंगार मेराआजआधे विश्व से अभिसार मेरा ,तुम मुझे अधिकार अधरों पर दिए
हो,प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए
हो...वह सुरा के रूप से मोहे भला
क्या,वह सुधा के स्वाद से जाए छला
क्या,जो तुम्हारे होंठ का मधु- विष पिए
होप्राण कह दो, आज तुम मेरे लिए
हो...मृत सजीवन था तुम्हारा तो परस
ही,पा गया मैं बाहू का बन्धन सरस
भी,मैं अमर अब, मत कहो केवल जिए हो,प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए
हो...
Friday, January 30, 2009
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो...
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