Monday, February 2, 2009

cloning madhushala

मय की चाहत में देखो पल पल पीड़ित है प्याला,

शुष्क परा था,सहम गया है, अश्क किसी ने क्यों डाला,

टूट न पाए, बिखड़ न जाये,

कोई पहुँचा दो इसे मधुशाला.

शब् भर पीता रहता हूँ, भर भर कर गम की हाला,

दर्द के दफ्तर में दिन भर, जपता हूँ सुख की माला,

खुमार खलिश की ज्यों की त्यों है,

जीवन हो गई मधुशाला.

धड़कन में तेरी ही धुन है, स्पंदन में तेरा ही सुर है,

तड़पन में तेरी ही लय है, स्मरण तेरा कोई मय है,

सानिध्य तेरा प्याला हाला का,

मैं मतवाला, तू मधुशाला.

हाथों को मैं छत कर दूँ, छत से तेरी छाती ढँक लूँ,

मन से पी लूँ खुश्बू तन की, मन ही मन मैं मदमस्त रहूँ,

कभी आँच न आये प्रणय आँच पर,

यूँ ही कायम रहे मधुशाला.

xxxxx

rajeev jha

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