Monday, February 2, 2009

मधुशाला के मेरे कुछ चुनिन्दा पंक्तियाँ..

जो हाला मैं चाह रहा था,वह न मिली मुझको हाला,
जो प्याला मैं मांग रहा था, वो न मिला मुझको प्याला,
जिस साकी के पीछे मैं था दीवाना, न मिला साकी,
जिसके पीछे था मैं पागल, हा! न मिली वह मधुशाला.
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बने पुजारी प्रेमी साकी,गंगाजल पावन हाला;
रहे फेरता अविरत गति से, मधु के प्यालों की माला;
" और लिए जा, और पीये जा" इसी मंत्र का जाप करे,
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला.
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मुसलमान और हिन्दू हैं दो, एक, मगर उनका प्याला;
एक, मगर उनका मदिरालय, एक, मगर उनकी हाला;
दोनों रहते एक न जब तक मंदिर मस्जिद में जाते;
बैर बढ़ते मंदिर मस्जिद, मेल कराती मधुशाला.
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बजी नफ़िरि और नमाज़ि भूल गया अल्लाहताला;
गाज गिरी, पर, ध्यान सुरा में मग्न रहा पीनेवाला;
शेख बुरा मत मानो इसको; साफ़ कहूँ तो मस्जिद को,
अभी युगों तक सिखलाएगी, ध्यान लगा मधुशाला.
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सजे न मस्जिद और नमाज़ि कहता है अल्लाहताला;
सज धज कर, पर, साकी आता, बन ठन कर पीने वाला,
शेख कहाँ तुलना हो सकती, मस्जिद की मदिरालय से,
चिर विधवा है मस्जिद तेरी, सदा सुहागन मधुशाला.
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-बच्चन

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