नम आँखों से मैंने देखा तुझे जाते हुए
आजा लौट के आजा एक बार यूँ ही जाते हुए
थाम ले इन बाहों में मुझे मुस्कुराते हुए
सो जाऊं इनमे मैं सिसस्कते , थरथराते हुए
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काटी है आँखों में साड़ी रात हमने
तुम्हारे भी बिस्तर पर सिलवटों का सिलसिला सा है
लम्हे भी अब वो बाकी कहाँ
की काटी थी तेरी बाहों के पनाहों में जिन्हें
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माटी की गुडिया है, शीशे सा रूह तेरा
कडवी ज़बान मगर, मोम का है दिल तेरा
तबियत लज़ीज़ तेरी, रंगीन मिजाज़ है
कभी जैसे साज़ कोई, कभी जैसे गाज़ है
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