Wednesday, January 11, 2012

क्या लिखूं ?

कि वो परियों का रूप होती है
या कड़कती ठण्ड में सुहानी धूप होती है

वो होती है उदासी के हर मर्ज़ की दवा की तरह
या ओस में शीतल हवा की तरह
वो चिड़ियों की चहचहाहट है
या के निश्छल खिलखिलाहट है

वो आँगन में फैला उजाला है
या मेरे गुस्से पे लगा ताला है
वो पहाड़ की चोटी पे सूरज की किरण है
या ज़िन्दगी सही जीने का आचरण है


है वो ताकत जो छोटे से घर को महल बना दे
है वो काफिया जो किसी ग़ज़ल को मुकम्मल कर दे
क्या लिखूं ??
वो अक्षर जो न हो तो वर्ण माला अधूरी है
वो जो सबसे ज्यादा ज़रूरी है

ये नहीं कहूँगा कि वो हर वक़्त साथ साथ होती है 
बेटियाँ तो सिर्फ एक एहसास होती हैं


वो मुझसे ऑस्ट्रेलिया में छुट्टियां , मर्सेडीस में ड्राईव,
5 स्टार में डिन्नर या महंगे आइपोड्स नहीं मांगती
न वो ढेर से पैसे पिग्गी बैंक में उर्हेलना चाहती है
वो बस कुछ देर मेरे साथ खेलना चाहती है


और मैं कहता हूँ यही
कि बेटा बहुत काम है, नहीं करूँगा तो कैसे चलेगा
मजबूरी भरे दुनियादारी के जवाब देने लगता हूँ 


और वो झूठा ही सही ,
मुझे एहसास दिलाती है
कि जैसे सब कुछ समझ गई हो

लेकिन आँखें बंद कर के रोती है
जैसे सपने में खेलते हुए मेरे साथ सोती है

ज़िन्दगी न जाने क्यूँ इतनी उलझ जाती है
और हम समझते हैं , बेटियाँ सब समझ जाती हैं


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शैलेश लोढा aka तारक मेहता