Tuesday, March 17, 2009

कल रात मैं कहाँ था?

क्या ख़लिश थी , ना ख़बर कि,
क्यूँ कब से मैं ख़फा था,
क्या ज़हन म चल रहा था,
कल रात मैं कहाँ था?
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वो लिबास सा लिपट कर,
क्यूँ लिहाफ़ सा लगा था?
मैं मरीज़ खुद दवा था,
कल रात मैं कहाँ था?
x
थी वो हूक हसरतों की,
सब धुँध से धुला था,
क्यूँ धूप में धरा था,
कल रात मैं कहाँ था?
x
क्यूँ खुली थी खिड़कियाँ भी,
कब लौ वो बुझ गया था?
मैं आप जल रहा था,
कल रात मैं कहाँ था?
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राजीव झा