क्या ख़लिश थी , ना ख़बर कि,
क्यूँ कब से मैं ख़फा था,
क्या ज़हन म चल रहा था,
कल रात मैं कहाँ था?
x
वो लिबास सा लिपट कर,
क्यूँ लिहाफ़ सा लगा था?
मैं मरीज़ खुद दवा था,
कल रात मैं कहाँ था?
x
थी वो हूक हसरतों की,
सब धुँध से धुला था,
क्यूँ धूप में धरा था,
कल रात मैं कहाँ था?
x
क्यूँ खुली थी खिड़कियाँ भी,
कब लौ वो बुझ गया था?
मैं आप जल रहा था,
कल रात मैं कहाँ था?
xxxx
राजीव झा
the search of "where i am" continues..
ReplyDeletein the pain of lonelines
in the aching of the mucles of my heart...
in my dying...
in my sighing...
the seach continues
in the sky and the stars at night
all of them
lonely
and
in search ....