जब लगा की थक कर हुआ चूर,
पथ मेरा मुझसे हुआ दूर,
हर काम रुका, पाथेय चूका,
थी यही नियती, अति कठिन- क्रूर;
अब कहीं किसी कोने में जा,
करना होगा कहीं ओढ़,
वे दीन हीन से जीर्ण वसन;
तब देख रहा यह चकित आज,
तेरी लीला का नहीं पार,
फिर धार उमर आई कोई,
मुझमे बहती नूतन बयार;
जब गई पुरानी भाषा मर,
नव गीत उठे छाती में भर,
जब पूरा हुआ पुराना पथ,
आये नव प्रांतर,क्षितिज उभर..
xxxx
रविन्द्र नाथ ठाकुर
ooofff.................it can revive the dead body....oof....
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