Wednesday, February 18, 2009

कबीर वाणी

नैनं अंतर आव तो नैन झांप तोहे लूं,
न मैं देखूं और को, न तोहे देखन दूं.
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मेरा मुझ में कुछ नहीं,
जो कुछ है सो तेरा ,
तेरा तुझको सौंप दे,
क्या लागे है मेरा.
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सोऊँ तो सपने मिलूँ,
जागूँ तो मन माहि,
लोचन राते सब घड़ी,
बिसरत कबहूँ नाहीं.
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साधू कहावत कठिन है,
लम्बा पेड़ खजूर,
चढ़े तो चाखे प्रेम रस,
गिरे तो चकना चूर.
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चाह गई चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह,
जिनको कछु न चाहिए, वो ही शहंशाह.
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सबद सबद सब कोई कहे,
सबद के हाथ न पाँव,
एक सबद औषध करे,
एक सबद किर घाव.
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जब हम जग में पग धरयो ,
सब हँसे हम रोये,
कबीर अब ऐसी कर चलो,
पाछे हंसी न होए.
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जो कछु किया सो तुम किया,
मैं कछु किया नाहीं,
कहो कही जो मैं किया,
तुम ही थे मुझ माहीं.
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आठ पहर चौसंठ घडी,
मेरे और न कोय,
नैना माहीं तू बसे,
नींद को ठोर न होय.

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