मैं ही बुद्धि , श्री , कीर्ति, गति, श्रद्धा, मेधा, दया, लज्जा, क्षुधा, तृष्णा एवं क्षमा हूँ.
कान्ति, शान्ति, स्पृहा, मेघा, शक्ति और अशक्ति भी मैं ही हूँ.
संसार में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसमे मेरी सत्ता न हो.
जो कुछ दिखाई देता है वो सब मेरा ही रूप है.
मैं ही सब देवताओं के रूप में पराक्रम करती हूँ.
जल में आर्द्रता, अग्नि में उष्णता, सूर्य में ज्योति, एवं चंद्रमा में शीतलता मैं ही हूँ.
संसार के समस्त जीवों की स्पंदन क्रिया मेरी ही शक्ति होती है.
यह निश्चय है कि मेरे अभाव में वह नहीं हो सकती.
मेरे बिना शिव दैत्यों का संहार नहीं कर सकते.
संसार में जो व्यक्ति मुझसे रहित है वह "शक्तिहीन" ही कहा जाता है,
कोई उसे "रुद्रहीन" या "विष्णुहीन" नहीं कहता.
आद्या शक्ति जगदम्बा का शाश्वत उद्घोष